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हिजड़ों का डॉक्टर, जिसने लड़ी मानवता की लड़ाई---

हिजड़ों का डॉक्टर, जिसने लड़ी मानवता की लड़ाई---
dr.s.e.huda

एक परवाज़ दिखाई दी है ---------

एक परवाज़ दिखाई दी है
तेरी आवाज़ सुनाई दी है,
जिस की आँखों में कटी थी सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है,
सिर्फ़ एक सफ़ाह पलट कर उस ने
बीती बातों की सफ़ाई दी है,
फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है,
आग ने क्या क्या जलाया है शव पर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है!


Friday 19 February 2010

किन्नरों को दिलाई अलग पहचान---


Agency
बरेली. कम ही लोगों को पता होगा कि उत्तर प्रदेश में बरेली शहर के एक
युवक द्वारा बेशुमार मुश्किलों का सामना करके करीब साल भर पहले शुरु की
गई मुहिम के चलते ही चुनाव आयोग ने पिछले महीने देश के करीब एक करोड
किन्नरों को मतदाता सूची में पुरुष एवं नारी से अलग श्रेणी में रखना
मंजूर किया!
किन्नरों को अलग पहचान दिलाने वाला यह युवक एक अतिव्यस्त डाक्टर और शहर
के नामी गिरामी अस्पताल का मुख्य चिकित्साधीक्षक है। डा. सैयद एहतिशाम
हुदा नामक इस फिजियोथेरेपिस्ट का ताल्लुक बरेली के एक प्रतिष्ठित घराने
से है और वह अपनी विशेषज्ञता के सहारे कई प्रख्यात खिलाडियों समेत
बेशुमार नामचीन हस्तियों को उनकी दुश्वारियों से निजात दिला चुका है।
अलग-थलग पडे किन्नरों के समाज में स्वीकार्यता दिलाने की उनकी मुहिम के
बारे में पूछने पर डा. हुदा ने बताया कि करीब साल भर पहले एक किन्नर उनके
पासस्पोंडिलाइटिस के इलाज के लिए आया मगर इस डर से कि कहीं डाक्टर साहब
के बाकी मरीज भाग ना जाए। वह उनके कमरे में नहीं आया और बाहर इंतजार करता
रहा।
उन्होंने कहा, उसके पर्चे पर कई बार नजर पडने पर काफी देर बाद उसे अंदर
बुलाकर पूंछा तो पर उसने कहा कि मरीजों के बीच आने के लिए उसे कई डाक्टर
डांट चुके है लिहाजा वह अंत में दिखाने के लिए कमरे के बाहर बैठा था।
डा. हुदा ने कहा कि एक इंसान होने के बावजूद समाज में किन्नरों के साथ हो
रहे इस दोयम दर्जे के व्यवहार को देखकर वह आंदोलित हो उठे। इस एक छोटी सी
घटना ने उनके मन में किन्नरों के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा कर दिया और
उस दिन उनकी जिन्दगी को एक मकसद मिल गया।
उन्होंने कहा किन्नरों के हक की लडाई छेडने पर शुरआती दौर में सबसे पहले
घर पर ही मेरा विरोध शुरु हो गया। परिजनों ने तंज कसे और मेरी पत्नी ने
रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लिया। इतना ही नहीं किन्नरों की भी एक बाहरी
आदमी की उनसे घुलने मिलने की कोशिश पर काफी तीखी प्रतिक्रिया रही और
उन्होंने भी मेरी खूब फजीहत क।
डा. हुदा ने बताया कि बडी मुश्किल से वह आखिरकार अपने मकसद के बारे में
सबको आश्वस्त करके आगे बढ सकें। उनकी पहल पर गत अप्रैल में यहां थर्ड
जेन्डर इक्वेलिटी, विषय पर संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी में शायद पहली बार
शिक्षाविदों,डाक्टरों बुद्धिजीवियों एवं समाज सेवियों के साथ किन्नरों को
एक मंच पर स्थान दिया गया और लोग उनकी व्यथा-कथा से रबर हुए।
बाद में लोकसभा चुनाव के दौरान किन्नरों को साथ लेकर उन्होंने बरेली शहर
के परंपरा से अपेक्षाकृत कम मतदान वाले इलाकों में असरदार मतदाता जागरकता
अभियान भी चलाया १ इसके बाद उन्होंने गत जून माह में चुनाव आयोग से
मतदाता सूची में किन्नरों के स्त्री और पुरष से अलग श्रेणी में रखे जाने
का अनुरोध किया।
अलग-थलग पडे इस वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोडने के लिए डा. हुदा
द्वारा किये जा रहे प्रयासों से मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला बहुत
प्रभावित हुए। किन्नरों को उनका हक दिलाने के लिए उन्होंने आयोग से
लगातार संपर्क बनाये रखा और इस सिलसिले में श्री चावला से दिल्ली में
मुलाकात भी की।
उपेक्षित किन्नर वर्ग के समाज में सम्मानपूर्वक खडा करने के लिए डा. हुदा
द्वारा अनवरत की जा रही कोशिशों के नतीजतन चुनाव आयोग ने गत 12 नवम्बर को
किन्नरों/ट्रांसंसेक्सुअलों को यह इजाजत देने का फैसला लिया कि अगर
मतदाता सूची में वे अपने नाम का उल्लेख पुरष या महिला के रप में नहीं
कराना चाहें तो अपना लिंग बताने के लिए खुद को अन्य के रप में दर्ज करा
सकते हैं। इसके पहले मतदाता सूची में किसी किन्नर का नाम उसकी इच्छा के
अनुसार स्त्री अथवा पुरुष श्रेणी में रखा जाता था।
ज्ञातब्य है कि इस सफलता से उत्साहित डा. हुदा का कहना है कि किन्नर भी
इंसान हैं और जरा से शारीरिक दोष की वजह से उनकी उपेक्षा ठीक नहीं है।
उनको भी एक आम आदमी की तरह जीने का हक है और इस दिशा में चुनाव आयोग का
फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है। आयोग द्वारा किन्नरों के लिए एक अलग श्रेणी
निर्धारित किए जाने के कुछ दिन बाद ही डा. हुदा का आभार व्यक्त करने के
लिए आल इंडिया किन्नर एसोसिएशन की अध्यक्ष सोनिया गुजरात से बरेली आयी और
उसने किन्नरों की समाज में स्वीकार्यता के लिए शुर की गई मुहिम की दिल से
तारीफ की थी १
डा. हुदा अब सदियों से उपेक्षित किन्नर वर्ग के पुनर्वास के लिए काम करना
चाहते हैं ताकि प्रशिक्षित होकर वे गाने-बजाने के अलावा अन्य काम धंधे भी
कर सकें।

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