दिनांक ०३.०५.२०१० और ०४.०५.२०१० को संस्था सिस्फा-इस्फी को प्रधानमंत्री कार्यालय भारत सरकार तथा गृहमंत्रालय भारत सरकार से क्रमशः दो पत्र प्राप्त हुए हैं। सर्वविदित है कि ॰संस्था सय्यद शाह फरज़न्द अली एजुकेशनल एण्ड सोशल फाउंडेशन ऑफ इण्डिया॰ के सचिव डॉ० एस० ई० हुदा द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम २००५ के अन्तर्गत प्रधानमंत्री कार्यालय से देश में होने वाली पन्द्रहवीं जनगणना २०११ में किन्नर समाज की अलग से गणना किये जाने के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी माँगी गयी थी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने उपर्युक्त विषय को गंभीरतापूर्वक जानकारी में लेते हुए गृह मंत्रालय भारत सरकार को अतिशीघ्र कार्यवाही का आदेश दिये हैं और समस्त जानकारी निर्धारित समयसीमा के अन्तर्गत उप्लब्ध कराने का संस्था को भी आश्वासन दिया है।
अतः आपसे निवेदन है कि लगभग एक करोड़ आबादी वाले किन्नर समुदाय को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के लिये हमारे प्रयास को बल दें। साथ ही सविनय अनुरोध है कि अपने सम्मानीय दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से किन्नरों के हक़ में उठी संस्था की इस आवाज़ को देशव्यापी आवाज़ बनाने में हमारा सहयोग करें।
भवदीय - डॉ० एस० ई० हुदा (सचिव)
संलग्नक - समस्त आवश्यक प्रतियाँ
Tuesday, 4 May 2010
Thursday, 22 April 2010
इस गणतन्त्र के जन में इनका शुमार क्यों नहीं?
क्योंकि हम ऐसा चाहते हैं।
बहुत ईमानदारी के साथ हम महसूस करते हैं, इसकी पुख्ता वजूहात हैं -
वो देखने में हमारे जैसे इंसान ही लगते हैं।
हमारे जैसा महसूस करते हैं
हमारी तरह रोना-हँसना भी जानते हैं
हमारी ख़ुशी में शरीक होते हैं अपना पेट पालने के लिये
नाचते हैं और हमको हँसाते हैं
वह भी साँस लेते हैं, दो रोटी भी खाते हैं
दर्द उनको भी होता है
दिल उनका भी दुःखता है....शायद हम-आपसे बहुत ज्यादा
तड़प - और वह इतनी कि रोज़ जीते हैं और रोज़ मरते हैं।
पूरी ज़िन्दगी में लाखों बार मौत-ज़िन्दगी से दो-चार होते हैं
......या हम दूसरी दुनिया से आये हैं या फिर ये लोग
अरे। हम जैसे आधुनिक लोग
कैसे हो सकते दूसरी दुनिया के
हम तो सैकड़ों वर्ष पुरानी इंसानियत की
सभ्यता रूपी गठरी को अपने मज़बूत कंधों पर उठाये
वक्त की रहगुज़र पर सीना चौड़ा करके चल रहे हैं।
हाँ। शायद ये ही कहीं से टपके हैं
या तो जंगल से या फिर आसमान से आये हैं।
पूँछके देखूँगा उन माँ-ओं से
शायद वो ही सबसे बेहतर बता पाएँ
चूँकि वो जन्म देती हैं
ज़रा सोचो तो...........
Thursday, 8 April 2010
IBN7 is telecasting "FIGHT FOR KINNAR,S"by Dr. Huda
विचित्र या अदभुत
बेमौसम की बरसात, बारह महीने मटर का मिलना। जब चाहो सो जाओ, सुबह चाय, ज़िन्दगी कभी सुस्त ज़रूरत से ज्यादा और कभी बहुत तेज़। बारिश की बूँद का छत के आँगन पर पड़े प्लास्टिक के तिरपाल पर टक-टककर गिरना और तेज़ बारिश तो और तेज़ टप-टप की आवाज़। हमें आवाज़ टप-टप की ही क्यों सुनाई देती है। चट-चट भी तो हो सकती थी।
गर्मी में आम का इन्तिज़ार, तरबूज़ भी होंगे। हो सकता है अगले बरस सर्दी में मिलने लगें सब। कोशिश करो राइगा नहीं जाती। मोबाइल पर मैसेज कभी बहुत अच्छे तो कभी अश्लील। सन्ता-बन्ता भी तो हैं। गाड़ी में तेल की सुई ऊपर-नीचे रोज़ थोड़ी। घबराकर पर्स पर नज़र, हर रोज़ कुछ नया करना है। चलो कुछ पढ़ लिया जाए। क्या-क्या पढ़ें। घूम-फिरकर सब किताबों में वही तो लिखा है। हाँ, कवर ज़रूर बदल गये हैं चटकीले रँगों वाले। आज बातनहीं करेंगे किसी से। सिर्फ खामोश रहेंगे। लोग रहने दे तब तो। उर्दू अदब का भीजवाब नहीं। ऐसा मेरे सारे हिन्दु दोस्त कहते हैं। और मुसलिम दोस्त कहते हैं उर्दू पढ़ने से नौकरी थोड़े ही मिलेगी। बेचारी उर्दू। ग़ालिब साहब को क्या सूझी। जो उर्दू और फारसी में दे मारा। अंग्रेज़ी में लिखते तो शायद छः सात नॉबेल मिल जाते। कुछ मरने से पहले तो कुछ मरने के बाद। एक मेल करना था ज़रूरी, अंग्रेज़ी में जवाब देना था। वह भी महिला को। वैसे आज-कल महिलाओं की अंग्रेज़ी बहुत अच्छी हुई है। डायरी पर डायरी रखी हैं नये साल की। मार्च बीत गया अप्रैल शुरू हो गया है। अभी तक एडजस्ट नहीं कर पाया हूँ कहाँ रखूँ। इस साल भी पिछले साल की डायरियों पर लिख रहा हूँ कुछ काम की बातें। पता नहीं लोग क्यों डायरियाँ बाँटते हैं। जिसको लिखना है, नये साल की डायरी ख़ुद ख़रीदे। दवा कम्पनियाँ तो लगता है पूरे वर्ष दवा से ज्यादा डायरियाँ बनाती हैं। थोक के हिसाब से बाँटती हैं। हर पेज़ पर एक गोली का नाम। चल रहा है सब। बस......चले चलो। कुछ घुटन-सी महसूस हो रही थी। सोचा सो जाऊँ, सोना बड़ा सुकून देता है। जो चाहो सोचो, कोई पहरेदारी नहीं। जिसकी चाहो उसकी बाट लगाओ सोते वक्त। जिस गाड़ी में चाहो.....बैठो। तमन्ना से लेकर जसला वाले बंगले में रहो। नेपाली गार्ड चार से दस रखो। सोते-सोते सांसद बनो, लेखक बनो, प्रधानमंत्री बनो। जो चाहो बनो। कभी-कभी गुलज़ार, रहमान और जावेद अख्तर भी बन जाओ। ओबामा भी बन सकते हो। मिशेल भी साथ होगी। नयी ड्रेस के साथ। पता क्यों नहीं गाँधी के सपने नहीं आते आजकल। तारों की सैर करो। बड़ी-बड़ी लम्बी-लम्बी बातें करना अच्छा लगता है। बड़े साहित्यकार की तरह। ओशो की भी कुछ किताबें ख़रीद लो। जूता-चप्पल सब पर बात करो। प्रचार करो जूते का। क्योंकि कम्पनी ने कुछ ग़ैर-इस्लामी लिखा है जूते पर। क़ीमत है चार हज़ार। ख़ूब मैसेज करो दोस्तों को चार हज़ार का जूता न पहनने की भड़ास निकालो। सब कुछ विचित्र-सा है न, पर अदभुत लगता है।
Monday, 5 April 2010
न्याज़ वर्सस प्रशाद
इसी वृहस्पतिवार ही की बात है। सुबह यही कोई ग्यारह बजे होंगे। बहुत ध्यान से और संभल-संभलकर मरीज़ देख रहा था। कि इतने में मेरे एक मरीज़ जो काफी लम्बे अरसे से मुझसे इलाज कराते-कराते मेरे अच्छे दोस्त भी हो गये हैं। उनका ओपीडी में प्रवेश हुआ। हाल-चाल पूछने के बाद मैं पास बैठे मरीज़ से कुछ सवाल पूँछता कि मेरे दोस्त अशरफ खाँ साहब ने मेरी ओर मुख़ातिब होकर कहा डॉक्टर साहब आज जल्दी में हूँ....बस दो मिनट लूँगा। मैंने कहा जी ज़रूर। अशरफ भाई..... बताइये क्या बात है। इतना कहकर अशरफ भाई ने एक पैकेट मेरी ओर बड़ी अक़ीदत से दोनों हाथ से पेश करते हुए कहा.. कि पिछली जुमेरात को मैं ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर हाज़िरी के लिये गया था। यह वहाँ का तवर्रूक है। मैंने बड़े ऐहतिराम के साथ तवर्रूक हाथ में लिया और मेज़ पररख लिया। अशरफ भाई काफी जल्दी में लग रहे थे। फौरन उठे और इजाज़त लेते हुए विदा हो गये। मैं फिर मरीज़ देखने में मशग़ूल हो चुका था। चूँकि दिन गुरूवार का था। शहर के बाज़ार की छुट्टी का दिन था। इसलिये मरीज़ों में ज्यादा तादाद शहर के व्यापारियों की थी। मैं ध्यान लगाकर मरीज़ों को देखे जा रहा था कि यही कोई बीस मिनट के बाद मेरे एक व्यापारी मित्र सुमित अग्रवाल जी का मेरे चैम्बर में आना हुआ। बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया और मैंने उनसे तशरीफ रखने के लिये कहा। मैं पास की कुर्सी पर बैठे मरीज़ की ओर मुख़ातिब हो ही रहा था कि सुमित जी बीच में ही बोल पड़े। डॉक्टर साहब थोड़ी जल्दी में हूँ क्योंकि आज दुकान की भी छुट्टी है....कई काम निपटाने हैं। पिछले वृहस्पति को शिरडी गया था। साईं बाबा के दर्शन को। आप के लिये प्रशाद लेकर आया हूँ। और बड़े ख़ुलूस के साथ उन्होंने एक प्लास्टिक का पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया। और मैंने खड़े होकर उस पैकेट को स्वीकार किया। सुमित जी को ससम्मान विदा किया और मरीज़ देखने में मसरूफ हो गया। मरीज़ों के आने-जाने का सिलसिला चलता रहा और वक्त दोपहर से शाम की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा। शाम के पाँच बज चुके थे। लगभग काफी काम निपटा चुका था। और अब मैं थोड़ा थक भी रहा था। मैंने अपने असिस्टेंट संजीव को चाय के लिये आवाज़ दी। और मेज़ पर दोनों हाथ टिकाकर बैठ गया। अचानक मेरी नज़र सामने रखे दोनों पैकेट्स पर पड़ी। जो मेरे अज़ीज़ दोस्तों ने मुझे बड़ी मोहब्बत से मुझे पेश किये थे। मगर यह बात सुबह ग्यारह-बारह बजे के बीच की थी और अब शाम के पाँच बज चले थे। इतने लम्बे अरसे में व्यस्तता की वजह से मैं समझ नहीं पा रहा था कि कौन-सा पैकेट अशरफ भाई का है और कौन-सा सुमित जी का। क्योंकि इत्तिफाक से दोनों पैकेट बराबर के आकार के थे और उसमें रखी बर्फी, इलायची दाने, गुलाब के फूल की पत्तियाँ, रेवड़ी भी एक जैसी दिख रही थीं। अब मेरे लिये बड़ी मुश्किल घड़ी आन पड़ी थी। क्योंकि ख्वाजा ग़रीब नवाज़ और साईं बाबा - दोनों के दर्शन का विशेष दिन जुमेरात ही होता है। और प्रशाद और न्याज़ भी एक जैसी। मेरे लिये बड़ा विचित्र एवं पहला अनुभव था। समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ। इतने में संजीव चाय लेकर आ गया। मैंने चाय के प्याले को बड़ी मज़बूती से पकड़ लिया। और बहुत दिमाग़ लगाने की कोशिश की कि कौन-सा प्रशाद किसका है। हर एंगिल से सोचा कि अशरफ भाई से लेकर कहाँ रखा था.....और सुमित जी से लेकर किधर रखा था। कौन-सा पैकेट किसका है। सुमित किधर बैठे थे। अशरफ ने किधर से दिया था। मगर सब कोशिशें बेकार। धीरे-धीरे मेरा डर बढ़ने लगा कि अब क्या होगा। साईं नाथ और ख्वाजा बाबा - दोनों एक साथ। बराबर-बराबर एक टेबिल पर। कुछ अजीब-सा घटने की घबराहट से मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। हाथ भी पसीने से कुछ गीले हो चले थे। मैंने सोचा कि अगर ख्वाजा बाबा का तवर्रूक साईं जी को याद करके चख लिया और साईं नाथ का प्रशाद ख्वाजा बाबा को याद करके चख लिया तो क्या होगा। मेरी साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगीं और अपने आपको कोसने लगा। काश.......दोनों को अलग-अलग रख दिया होता। काश......दोनों पैकेट पर दोस्तों के नाम की स्लिप होती...वगैरह....वगैरह। मैंने ख़ुदा को याद किया और दुआ माँगी कि इस मुश्किल घड़ी में मेरी मदद कर। अचानक मेरे मन में विचार कौंधा और मैंने दोंनो पैकेट्स का मुँह खोलकर एक-दूसरे के सामने रख दिया और सोचने लगा कि शायद अब कोई करिश्मा होगा। ध्यान लगाकर देखने लगा। दो-तीन मिनट बाद मेरी निराशा बढ़ने लगी। कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा था। न्याज़ और प्रशाद का कोई द्वन्द मुझे नहीं दिख रहा था। दोंनो पैकेट्स ख़ामोश मेज़ पर रखे थे। और न ही अपने को सर्वोच्च दिखाने की क़वायद पैकेट्स में नज़र आ रही थी। छः बज चुके थे। शाम की ओपीडी का समय समाप्त। पर मैं बड़ा बेचैन, और दिमाग़ी परेशानी में उलझ चुका था। इसी बीच मेरे इंटरकॉम टेलीफोन की घन्टी घनघनाई। घन्टी ने मेरी बेचैनी को तोड़ा। फोन उठाने पर पता चला कि जनरल वार्ड में बेड नम्बर ग्यारह पर मुझे एक मरीज़ ने बहुत ज़रूरी याद किया है। मैं दौड़ता हुआ जनरल वार्ड पहुँचा। पर मेरा दिमाग़ मेरे चैम्बर में रखे न्याज़ और प्रशाद के द्वन्द पर था। जो मेरी बेचैनी बढ़ाए जा रहा था। मरीज़ को कुछ ज्यादा परेशानी थी। लगभग दस मिनट का समय उसके पास लग गया। पर मेरा ज़ेहन तो कहीं और ही था। सिस्टर को ज़रूरी निर्देश दिये और तक़रीबन दस मिनट के बाद बड़ी बेचैनी से लगभग दौड़ता हुआ अपने चैम्बर की ओर आया। अन्य ख्याल दिमाग़ में सवाल कर रहे थे। जैसे ही मेज़ पर नज़र पड़ी..... अवाक रह गया..... मुँह और आँखें खुली रह गयीं। मैंने देखा मेज़ पर रखे दोनों पैकेट्स में से चीटियों का एक बड़ा समूह एक-दूसरे पैकेट में निःसंकोच आ जा रहा है। सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। अपने चेहरे को पैकेट्स के करीब लाकर और क़रीब से देखा। अचानक ऐसा अहसास हुआ कि एक पैकेट्स से दूसरे पैकेट्स में आने-जाने वाली चीटियाँ मेरा मुँह चिड़ा रही हैं। उन चीटियों के मुँह चिढ़ाने से मुझे शर्म महसूस हो रही थी। परन्तु अब मेरा दिमाग़ी कौतूहल शान्त था और चेहरे पर मुस्कुराहट भी।
Friday, 2 April 2010
A Letter to the president of india--
To,
The President of India
Rashtrapati Bhavan New Delhi - 110 004
New Delhi - 110 004
Date:1.04.2010
SUB:- Separate Gender Identification and specific UID – For Eunuchs.
Sir,
We are running an organization in the name ‘Syed Shah Farzand Ali Educational & Social Foundation of India’, comprising of large community of intellectuals, doctors, national & international social activists, academicians and sport person. The organization chooses such people who are motivational, conscientious, and intellectuals with deep sense of commitment. Our approach is long term and leveraged. The organization works on social and educational issues of the society irrespective of cast and religion. We are working for the last may years in Maharashtra, MadhyaPradesh, Gujrat, Uttar Pradesh and Delhi and near by areas mainly concentrating on the welfare of women, children and eunuchs, from the deprived group and down trodden group of the society, in respect of their education socio-economic and health status.
Since we are deeply associated with the eunuchs for many years in different states, we have observed that for the upliftment of eunuchs, a lot has to be done. According to the survey of non-government organization in the year 1995 there were approximately 70 laks of eunuchs in India, which must have increased to 1 crore by now. Which makes them a very important part of the country.
Now time has come that they should be taken on priority level. We have passed from very difficult phase and after vigorous efforts and determined attempt, we were able to persuade Chief Election Commissioner, (letters for all correspondence is enclosed) and we achieved success in terms historical decision given by the election commission, that eunuchs will be given separate category, during voting time.
We feel presently Govt. has no authentic figure of eunuchs in India. Without having the actual figure it is very difficult, if not impossible to do the genuine work for the welfare of the eunuchs. So now it becomes the utmost responsibility to have the correct figure of eunuchs in India. It is suggested eunuchs should also be counted separately, during census 2011 and should be considered in the separate category like separate category given in voters id.
Without raising eunuchs socially and economically, comparable to the rest of the community, a dream of changing India from the developing country to developed country will be very difficult. This group is deprived of all the developments and benefits of the country from the very beginning, their condition is very pathetic and till date no individual govt. has taken pains to even think about them, as if they do not exists.
Now since Govt. has taken step of making UID (Unique Identifier) Cards, we wish that if possible specific UID card could be made available for eunuchs so that they can be easily identified and the Govt could come to know the exact number of eunuchs and also whenever any program from government is organized for them, it will easily reach to these eunuchs and they can make proper use of the same. Eunuchs comprises a large group of the society and it is our responsibility to bring them into the main stream to make a better society, a better nation and above all a better human being.
According to the Govt website (www.censusindia.gov.in) it is mentioned that Govt will advertise through print and electronic media, motivational programs for the public to co-operate the enumerators visiting individuals house in the same way it is requested to run motivational programs separately for eunuch community also.
As we have mentioned above, we have deep presence amongst eunuchs and in many states we are working for the welfare of eunuchs, we have lot of information regarding their status and strength. We wish earnestly to discuss on this matter personally, as and when your good Self could spare some time, at your convenience.
In the end we would like to request your good self to give a serious thought and take
necessary step on this.
An early and positive response will highly be appreciated.
Thanking you,
Yours truly,
(Dr. S. E. Huda)
Monday, 15 March 2010
The Truth of Bareilly Riots- By Aditya Kohli: 13.3.१०
There is little news out of the dark pit called Bareilly, whatever little is coming out is tainted and distorted either by agents of mischief or out of human error . After going on the net I thought of putting little time in resconstructing the events as they have unfolded over past 12 days . The readers are advised to kindly spare some moments to read this important chronology and if possible transmit this to the friends so that amidst a sea of deliberate mis-information an iota of truth is served.
Thanks
Aditya Kohli
reporting from Bareilly on 13th March 2012---
It was a usual 12 wafaat procession going on for many years (mind it Bareilly is great seat of Sunni Muslim school). The city has unparalleled history of communal harmony and pluralistic life style. No one among my parents and uncles remembers anything ever going wrong between hindus and muslims for past as many decades as can possibly be remembered by living generations. Then what went wrong???!!!
This procession was scheduled on the very day of Holi but in line with the communal tolearance and brotherhood the Muslims had agreed to postpone their procession for the next day, as they have been doing for past many years On that fateful day of 2nd March 2010 A small group of Muslim boys ( whose collective number was not more than 30) was coming to join in the main body of the procession about a kilometer far off at Koharapeer ( It was not the procession itself which characteristically has some 30-50 thousand individuals as it is made to appear!). As all Bareilly residents know a large number of processionists are kids wearing traditional islamic attires . When they were passing through a mohalla The Locals of majority community objected and intimidated the boys It was hardly few minutes that a volley of brickbats started falling on these boys ( who kept the brickbats in such huge quantity on roof tops? were things already planned before the flash point?) and many of these processionist boys got injured and started to bleed .They somehow made it to the main procession where after seeing their blood the mob reacted the way it probably should have been. The leaders of procession called for police help which did not come in time. They are on official record of giving 30 minutes to the administration to control the miscreants and brickbatters But the police won’t come . It was the next day of holi and possibly the police force was celebrating the holi as they usually do on next day. Mob has it’s own dynamics and soon the retaliation started resulting in burning of shops which was indiscriminate unlike the popular belief there were many muslim shops which were completely burned down . This is how the riot started.
Bareilly has unusual strength resulting from centuries of co -existence and inspite of utter failure of the administration the city somehow was about to regain it’s lost pace and when every body thought that by tomorrow curfew shall finally be a history that the administration arrests Sunni muslim cleric Maulana Tauqeer raza Khan , the National president of powerful IMC or Ittehad e Millat, The political party with widespread acceptance among the moniority section of western U.P. that was in the evening of 8th March. It was a very quick arrest made by the D.M. Ashish goel and the D.I.G. on pre-text of talk over a cup of tea in Kotwali and within two hours he was booked under scores of IPC clauses. Now Maulana is no baby sheep . It is beyond any sane mind’s comprehension that why administration took the matter so casually? either they should have arrested him on the very day of rioting if they were sure of his involvement ( an allegation which Maulana catagorically denies)or logically should have done their home work thoroughly and later when city had normalized they could have pursued the matter .But the administration’s hasty act remains an unsolved mystery till date .it was as if the authorities themselves wanted to aggaravate the precariously balanced situation .
In the evening hours of the 11th March Maulana Tauqeer was released from jail on intervention of Lucknow ministerial top brass by using a novel tool named CPRC 169. The supporters of Maulana and his ancestoral Barelvi chair were on dharna sitting calmly in Islamiya school and azad Inter college demanding Maulana’s unconditional release. Their number was around 30 thousand yet they displayed remarkable dicipline and not one of them is reported to have done any thing negative except peacefully sitting on dharna for over 30 hours. Their number was increasing with each passing moment and the news of abrupt arrest of a family member of the world famous Aala Hazrat family . The unrest was spreading like a jungle fire and one by one Muslims in many different cities in India and also outside India were registering their protest ( which remained entirely peaceful everyehere)
Immediately following the release of their leader Muslim crowd started dispersing off peacefully trying to make it to their respctive homes after securing their leader’s release from prison. This was the moment Bajrang Dal and BJP were waiting for . Few paid goons attacked the returning muslims individuals two of them sustained severe cut by sword at Kaali Baari, The arson had started simultaneously in many parts of Bareilly as if being orchesterated by intelligent beings. The new Team of the administration had just arrived and had not even got oriented with things and fighting these goons was a tough job.
on previous night as well before leaving the outgoing D.M. and D.I.G had misplayed their shots ( stupidly or deliberately?) where the senior police officers were seen intimating ( rather intimidating)the peaceful posh Hindu colonies . The officer would come with assumed helplesness and overt symapthy and would inform the confused residents that the police is no more able to defend you all therefore make your own arrangements. This was the worst gimmick played by the administration and it seriously puts a big question mark before their actual intentions. The result was predictable on that night of 10-11 march 2010 no one slept in Bareilly, everyone was scared by faceless terror. The entire Bareilly was engulfed by mass hysteria where each colony thought the rioters are coming any moment. In Rajendra Nagar area some hundreds of the slogan shouting and arms waving ( yes arms amidst Curfew !)men most of whom were well known right wing activists belonging to VHP, Bajrang dal and BJP etc .were seen whose photo was published in 11th March Jagran newspaper.
on 11th and 12th The bajrang dal and similar outfits were busy in vandalizing , looting and burning muslim owned shops and property and police and paramilitary forces are having tough time curtailing their meance till the writing of these lines.
They seem desperate and are ready to use medium of terror and rioting to instill insecurity, fear and mistrust in the heart of the residents of Bareilly
The question arises who shall be benefitted by all this ?
The answer does not require any extra intelligence than normally we ordinary humans are gifted with..
These are the means by which BJP , BAJRANG DAL and similar outfits are trying to regain their badly lost territory.
The polarization of votes will help Right wing to garner more seats in upcoming Vidhansabha and later loksabha elections. This polarization has been a tested method by which Advani ji had gained power following Babri Mosque destruction. In recent times Varun Gandhi has won the last M.P election by delivering hate speeches against the minority community of pilibhit , Otherwise he was surely a badly defeated candidate.
On the evening of the release of Maulana the Muslim boys were attacked in vicinity of sitting BJP MLA Mr. Rajesh agarwal who is reported to have played important role in retalliation game consequently most burnt shops are in Kaali Baari locality where Rajesh Ji resides
All over there are signs that the poltical tiger is on prawl and is targetting the innocent, peaceful socities like that of Bareilly where the only way people have known is co-existence, where the monuments like chunna Miyan ka mandir , alakhnath temple and khankah e Niyazia stand tall as a testimony to centuries of love and brotherhood among the hindus and the muslims.
It is not surprising that BJP has declared three member committee to probe the Bareilly riots it is headed by none other than Maneka Gandhi ji and has controversial M.P from Gorakhpur as her team member, I wonder why services of Togadia ji and Vinay Katiyar are not taken?..or maybe like a good players Aces are kept reserved for the last round of poker.
There is no end to being bias and hunt for conspiracy theories but let us not dismiss the facts which are so obvious.
I have tried to maintain full honesty in reporting the incidences as they are and my tolearant/ secular/ pluralistic up bringing lets me put these facts before the world to see them as they are ! not as they are made to appear by various netizens .
:SATYAMEV JAYATE:
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